गुरुवार, 20 नवंबर 2008

हादसे-एक ग़ज़ल



जो कभी ज़हर के प्याले थे अब जाम हो गये हैं
हादसे मेरे शहर में अब आम हो गये हैं....
छपती थी सुर्ख़ियों में कभी क़त्ल की इबारत
इंसानियत के क़ातिल अब ग़ुमनाम हो गये हैं...
जो वेश धर रावण का, पेट भरा करते थे
वो सभी बहुरूपिये अब राम हो गये हैं...
सुकूं पाते थे जिस कब्र पर थोड़ा ठहर कर
वहीं हमारी मौत के इंतज़ाम हो गये हैं...
न चल सकोगे तुम भी मेरे साथ हमसफर
हम भी शहर में आजकल बदनाम हो गये हैं...
ज़माने के साथ कुछ तो बदलना सीखो शरीफज़ादो
चोरी, डकैती, क़त्ल अब बड़े काम हो गये हैं...

मंगलवार, 10 जून 2008

अबोध भक्ति


मैंने बड़े आश्चर्य से देखा
वो नन्हा बालक
हिंदुस्तान के नक्शे को ज़मीन में रख
उसमें बाल्टी भर भर के
पानी डाल रहा था....
मैंने पूछा उस अबोध बालक से
इस हरकत का उद्देश्य
तो वो बड़ी मासूमियत से बोला
अंकल, मैं अपना देश बचा रहा हूं
रेडियो कह रहा था....
हिंदुस्तान जल रहा है ।