मुट्ठी भर रेत की तरह
धीरे-धीरे ग़ुम हो जाने के बावजूद
वो नहीं छोड़ता सपने देखना
क्योंकि
सत्ताधीशों की मंडी में
सिर्फ़ सपने ही
बिना क़ीमत बिकते हैं।
मुट्ठी भर रेत की तरह
धीरे-धीरे ग़ुम हो जाने के बावजूद
वो नहीं छोड़ता सपने देखना
क्योंकि
सत्ताधीशों की मंडी में
सिर्फ़ सपने ही
बिना क़ीमत बिकते हैं।
अचानक आंसू की तरह टपक पड़ते हैं
सपने
और उलझ कर
उसके लंबे स्याह केशों में
लहरा उठते हैं
किसी
खुशबूदार तेल के विज्ञापन की तरह।
सोचो,
क्योंकि जीने के लिये ज़रूरी है कुछ सोचना
क्योंकि इंसान की फ़ितरत है सोचना
ये अलग बात है
कि
सोचते रहने से ज़िंदग़ी कम होती है...
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