मंगलवार, 6 अक्तूबर 2009

सलामी

ताज़ा ख़बर....ताज़ा ख़बर...ताज़ा ख़बर...

नेताओं को उठ कर सलाम करेंगे अफ़सर

चालान करने पर नेता ने सिपाही को पीटा

भीड़ ने थाना फूंका, वर्दी वालों को घसीटा

विधायक की बदसलूकी, अफ़सरों पर गाज़

फोन ना उठाने पर नेताजी हुये नाराज़

उसकी गर्दन की नसें खिंच गयीं...

कुछ और ख़बरें यादों में गुज़र गयीं

अपहरण, हत्या के आरोपियों को मिली ज़मानत

जनता ने उन्हें ही सौंप दी लोकतंत्र की अमानत

बढ़ने लगी हत्या, लूट और बलात्कार की वारदात

ख़ौफ में जीना भी जैसे हो गया हो आम बात

उसका चेहरा अपमान से काला पड़ चुका था

प्रजातंत्र का फल भीतर से कितना सड़ चुका था

अबे घूरता क्या है, साले तेरी वर्दी उतरवा दूंगा

सरकार है अब मेरी, तेरा ट्रांसफर करवा दूंगा

मेरे आदमियों को भूल से हाथ भी मत लगाना

सुबह शाम मेरे घर पर तुम हाजिरी बजाना

उसकी बर्दाश्त की हद पार होने लगी

वर्दी की इज़्ज़त तार तार होने लगी

और फिर एक दिन मारा गया सफ़ेदपोश

पास में पड़ा था एक और नेता बेहोश

नियति के चक्र का ये कैसा था खेल

एक को मिली जन्नत, दूसरे को जेल

दोनों के ही सिर पर सियासत का नशा भारी था

लेकिन अब भी सोच रहा वो पुलिस अधिकारी था

कि जनता के राज का ये कैसा दस्तूर है...

देनी पड़ेगी सलामी, वो कितना मज़बूर है।

धूल भरा फूल

प्रेमिका का ख़त आया

प्रेमी हर्षाया

जा पहुंचा उससे मिलने बाग़ में

लिये एक धूल भरा फूल अपने हाथ में

अधरों ही अधरों में मुस्कुराया

'प्रेम की पहली भेंट' कह कर प्रेमिका की ओर बढ़ाया

वह क्रोधित हो, फूल को पांव से रौंद कर ज़ोsर से चिल्लायी

प्रेमी की आंख भर आयी

शांत स्वर में बोला

न कर प्रेम का अपमान, ओ नादान

बिन कहे तुझे मैंने ज़िंदगी की हक़ीक़त दिखलायी है

प्रेम के इस सुगंधित फूल में

अपनी ग़रीबी की धूल मिलायी है।।