तारीखें बदलती हैं
हर रोज
फिर एक दिन
पूरा साल बीत कर
इतिहास में हो जाता है
दर्ज
आओ देखें
कितना बचा
और कितना चुकाया
इंसानियत का
कर्ज
इससे पहले कि
लोकतंत्र का
पांच वर्षीय महापर्व
हम सब मनाएं
इतिहास के इन पन्नों को
पलटाएं
सदियों पहले नहीं
सिर्फ
पांच साल पीछे जाएं
कितनी
मिली सुविधाएं
खत्म हुईं
कितनी दुविधाएं
बचीं या फिर
मर गयीं संवेदनाएं
इससे पहले
कि
इसके या
उसके पक्ष में नारे लगाएं
तय करें
काले धन के नाम
पर कहीं
मन काले न हो जाएं
बेटों को पढ़ाएं
कि
बेटियां कैसे बचायें
खत्म हों
कैसे समाज से
पुरुषत्व की क्रूर दासताएं
खेत खलिहानों में
पसीने की तरह
खून टपकाते
हाथों से
दो जून रोटी खाएं
तो कभी
शांत पहाड़ी वादियों में
अपने हक़ के
लिये
गला फाड़ कर चिल्लाएं
एक दूसरे पर
थोड़ा हंसें
और थोड़ा अपनी
आत्म मुग्धता को हंसाएं
बदल जाएं
चाहे कितनी सत्ताएं
उस पर
बेधड़क बोली का
अंकुश लगाएं
चलो!
इस साल को
लोकतांत्रिक अभिव्यक्ति का
साल बनायें
नये साल में नये अंदाज़ में
मिल कर कदम बढ़ाएं।
आप सभी को नव वर्ष की हार्दिक शुभकामनाएँ।
हर रोज
फिर एक दिन
पूरा साल बीत कर
इतिहास में हो जाता है
दर्ज
आओ देखें
कितना बचा
और कितना चुकाया
इंसानियत का
कर्ज
इससे पहले कि
लोकतंत्र का
पांच वर्षीय महापर्व
हम सब मनाएं
इतिहास के इन पन्नों को
पलटाएं
सदियों पहले नहीं
सिर्फ
पांच साल पीछे जाएं
कितनी
मिली सुविधाएं
खत्म हुईं
कितनी दुविधाएं
बचीं या फिर
मर गयीं संवेदनाएं
इससे पहले
कि
इसके या
उसके पक्ष में नारे लगाएं
तय करें
काले धन के नाम
पर कहीं
मन काले न हो जाएं
बेटों को पढ़ाएं
कि
बेटियां कैसे बचायें
खत्म हों
कैसे समाज से
पुरुषत्व की क्रूर दासताएं
खेत खलिहानों में
पसीने की तरह
खून टपकाते
हाथों से
दो जून रोटी खाएं
तो कभी
शांत पहाड़ी वादियों में
अपने हक़ के
लिये
गला फाड़ कर चिल्लाएं
एक दूसरे पर
थोड़ा हंसें
और थोड़ा अपनी
आत्म मुग्धता को हंसाएं
बदल जाएं
चाहे कितनी सत्ताएं
उस पर
बेधड़क बोली का
अंकुश लगाएं
चलो!
इस साल को
लोकतांत्रिक अभिव्यक्ति का
साल बनायें
नये साल में नये अंदाज़ में
मिल कर कदम बढ़ाएं।
आप सभी को नव वर्ष की हार्दिक शुभकामनाएँ।
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