शनिवार, 29 दिसंबर 2018

मुद्दे

वो मुद्दे बनाते हैं
बर्फ के गोलों की तरह
और
उछाल देते हैं
चारों तरफ़ फैल जाते हैं
उन्हीं के मुद्दे
और
उनके बीच खो जाते हैं
कुछ के
जीने के अधिकार
कुछ के
बोलने के अधिकार
कुछ के
सोचने के अधिकार
और लोग
आपस में ही लड़ मरते हैं
सत्ता को
सही और गलत ठहराने में
वो
विजेता की तरह
डोलती है
उसका अट्टहास
सुन्न कर देता है दिमाग़ों को
पीछे धकेल देता है
इस सच को
कि
सत्ता का होना
तभी सार्थक है
जब
उसके दूरंदेश हाथों में हों
हमारे मुद्दे
कि
एक दिन
ये निगल जाएगी
हर अपने पराये को
क्योंकि
सत्ता की भूख
लगातार बढ़ रही है।

- भूपेश पंत

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