शनिवार, 29 दिसंबर 2018

सत्ता की साँप-सीढ़ी

सच
एक साँप की तरह है
जो
अपना फन उठा कर
रोक सकता है
तुम्हारे अहंकार का राजपथ
कभी भी
वो
तुम्हारे पड़ाव को
तब्दील कर सकता है
मंज़िल में
उसकी एक फुंकार
पड़ सकती है
तुम्हारी बदनीयती पर भारी
उसका शांत हलाहल
किसी दिन
उतार सकता है
बददिमाग भीड़ पर
उड़ेला गया
तुम्हारा गर्म और ख़ूनी नशा
उसका डर 
निकाल सकता है
किसी दिन
तुम्हारे ख़ौफ़ की चीख़
वो तुम्हारे
पैरों पर लिपट कर
दे सकता है
वही
गिजगिजाता अहसास
जो
व्यवस्था के अंधकार में
दबोच ली गयीं
मासूम बच्चियों के
शरीर से लेकर
अंतर्मन तक बेशर्म हुआ होगा
वो एक दिन
तुम्हारे मुंह से निकले
झाग की तरह
खुद को ला सकता है
सब के सामने
तुम्हारे ही भीतर से
इस सर्प का कड़ुवा दंश
तुम्हारे
आस्थायुक्त दांतों से
कहीं ज़्यादा
गहरा है
तो
सत्ताधीशो
तुम समझ चुके हो
कि
सच का होना
वाज़िब नहीं है तुम्हारी दुनिया में
समय रहते
इस सांप को कुचलने
पर ही
टिका है, तुम्हारा वजूद

- भूपेश पंत

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