शुक्रवार, 28 दिसंबर 2018

ग़ुम राह !

भूपेश पंत

एक था अच्छाई का रास्ता। एक वक़्त था जब ये रास्ता गुलज़ार रहा करता था। सुबह से शाम तक लोगों की चहलकदमी से। कोई रास्ते की मज़ार पर चादर चढ़ाने जाता तो कोई भगवान की चौखट पर माथा टेकने। एक प्राइमरी स्कूल भी इसी रास्ते पर था। चहकते बच्चों का कलरव माहौल में हंसी और खुशी घोल देता था। लेकिन अब इस रास्ते की सूरत और किस्मत दोनों बदल चुकी हैं। लोगों की आमद बहुत कम हो चुकी है।  हालांकि कुछ पुराने लोग अब भी कभी कभार इस रास्ते पर उग आये झाड़ झंखाड़ के बीच रास्ता बना कर मंदिर और मज़ार तक हो ही आते हैं। लेकिन वो बात अब रही नहीं।स्कूल की जीर्ण शीर्ण हालत ने बच्चों के मन से पढ़ाई की ललक छीन ली है लिहाज़ा वो अब बंद है। रास्ते के किनारे फैल चुकी बेतरतीब झाड़ियों ने अच्छाई के इस रास्ते को घेर कर संकरा और चुनौतीपूर्ण बना दिया है।

दोराहे पर इसी रास्ते को अलग ही दिशा में ले जाने वाला एक और रास्ता है, बुराई का रास्ता। बीते कुछ सालों में ही ये रास्ता पगडंडी से राजमार्ग बनने का सफ़र तय कर चुका है। इस रास्ते पर एक शराब का ठेका खुल चुका है। आगे बढ़ कर एक श्मशान और कब्रिस्तान तो काफ़ी समय से हैं। कभी लोग इस पगडंडी की दिशा में जाने से भी कतराते थे। मजबूरी में यहां की झाड़ियां दिशा मैदान के ही काम आती थीं। लेकिन अब ये रास्ता अपने पूरे शबाब पर है। शराब के ठेके और आसपास के ढाबों में अलमस्त  भीड़ अक्सर रहती है। ऊपर से लोग अब मरने भी ज़्यादा लगे हैं। यानी सुबह को मौत का जुलूस और शाम को मौत का जश्न इस रास्ते की सबसे बड़ी खासियत है।

"और भाई अच्छाई, तुझ पर क्यों मुर्दानी सी छाई," बुराई के रास्ते ने अकड़ते हुए शायराना अंदाज़ में बदहाल पड़े अच्छाई के रास्ते से पूछा।

"क्या कहूं भाई, अच्छाई के क़द्रदान ही नहीं रहे। सब समय का फ़ेर है।" सुबकते हुए अच्छाई के रास्ते ने जवाब दिया।

बुराई के रास्ते ने उलाहना दी, "और चलो नेकी और भाईचारे की राह, देख लिया नतीजा। अरे ये लोग बेवकूफ़ी की हद तक भावुक हैं और आँख मूंद कर बात मान लेते हैं। बस इन्हें बरगलाने का तरीका आना चाहिये। मुझे देखो, मैंने भी तो यही किया।"

"मैंने तो जीवन भर लोगों को अच्छाई से जोड़ कर रखने की कोशिश की। बच्चों को शिक्षा से जोड़ा, लोगों को मज़हबी दोस्ती का पैगाम दिया और फिर अचानक ऐसा क्या हो गया कि लोगों ने मुझ पर चलना छोड़ दिया और तुम्हारी तरफ मुड़ गये।" अच्छाई के रास्ते ने बुराई के रास्ते से पूछ ही लिया।

बुराई के रास्ते का चेहरा आत्ममुग्धता से भरा हुआ था। विद्रूप सी हंसी के साथ वो फुसफुसाया,  "तुम तो धर्म की राह पर चलने वालों का इंतज़ार करते रह गये लेकिन मैंने खुद एक धर्म गढ़ लिया, नफ़रत का धर्म। मैंने लोगों को इसके जहर से मदहोश कर दिया। लोग आपस में लड़ने लगे और मेरे रास्ते पर श्मशान और कब्रिस्तान की भीड़ बढ़ने लगी। बेवकूफ़ों को ये नशा रास आने लगा। और फिर आज के दौर में सेल्फ मार्केटिंग कितनी ज़रूरी है और उसके लिये मीडिया का किस तरह इस्तेमाल करना है ये तुम क्या जानो। मैंने अपने ऊपर एक बड़ा सा बोर्ड लगा लिया, 'धर्म और मोक्ष का रास्ता' और फिर उसकी फोटो को सोशल मीडिया पर अपलोड कर दिया।"

बातचीत के दौरान रात गहरा चुकी थी और अच्छाई का रास्ता नयी सुबह के इंतज़ार में नींद के आगोश में जा चुका था। बुराई कुटिलता से मुस्कुरायी और राजपथ पर पसर गयी।

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