शनिवार, 29 दिसंबर 2018

चौकीदार-1

(लघुकथा) 
आज सुबह कॉलोनी के चौकीदार का उतरा सा चेहरा देखा तो पूछ ही लिया। लाठी टिका कर सलाम करने के बाद मुंह बना कर बोला, साहब बड़ा खराब लगता है। चौकीदारों की तो जैसे कोई इज्ज़त ही नहीं रह गयी है। कुछ आप जैसे भले लोग हैं लेकिन बाकी सब आते जाते ऐसे घूर कर देखते हैं जैसे हमने ही कोई चोरी या नोटबंदी की हो। अब भला सूट बूट वाले चौकीदार से हमारा क्या मुकाबला। जिसे देखो चौकीदार को गरिया रहा है। हम तो साहब ईमानदारी से दिन रात की ड्यूटी करते हैं पेट पालने के लिये। अब तो ये डर सताने लगा है कि किसी और की खुंदक में कोई हमें ही ना पीट दे। आप कुछ करो ना साहब। 

(भूपेश पंत)

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