शनिवार, 29 दिसंबर 2018

साथियो!

कर चले वो फ़िदा जानोतन साथियो
करके किनके हवाले वतन साथियो

गाली देने के मौके बहुत हैं मगर
जान लेने की रुत रोज आती नहीं
वतनपरस्ती को भी तो रुसवा करे
वो जवानी जो खूं में नहाती नहीं

अच्छे इनके नहीं हैं करम साथियो
कर चले वो फ़िदा...

सांस थम सी गयी, नब्ज जम सी गयी
अपनी वहशत को हमने न रुकने दिया
कुचली कलियों का हमको तो कुछ ग़म नहीं
सर इंसानियत का हमने न उठने दिया

ये कहां ले के आया बांकपन साथियो
कर चले वो फ़िदा...

राह वोटों की ऐसे न वीरान हो
तुम घुमाते ही रहना नये काफिले
जीत का जश्न इस मौत के बाद है
आओ मिलके काटें आपस में गले

सच को मिलकर उढ़ाएं कफ़न साथियो
कर चले वो फ़िदा...

खेंच दो नफरतों की ज़मीं पर लकीर
बचने पाये न पार्टी का दुश्मन कोई
काट दो हाथ अगर हाथ उठने लगें
छूने पाये न सत्ता का दामन कोई

राम हो तुम और वो रहिमन साथियो
कर चले वो फ़िदा...

- भूपेश पंत

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