शनिवार, 29 दिसंबर 2018

अक्ल पर पाला!

खफ़ा होकर बैठे हैं वह इस पाले में
क्यूंकर गये कुछ लोग उस पाले में।

रहना है अगरचे उन्हें किसी पाले में
तो क्यों नहीं आ जाते इसी पाले में।

सत्ता की भूख नचाती है उनको ऐसे
कभी इस पाले में कभी उस पाले में।

सियासियों ने बांट दिया है इस कदर
जो नहीं इस पाले में वो उस पाले में।

उनके होने का कोई मायना नहीं होगा
जो न इस पाले में और न उस पाले में।

हाकिम रख रहे हैं सबका हिसाब देखो
कौन कौन है यहां किस किस पाले में।

बिछ गयी है यों खुदगर्जी की बिसात
इंसानों की जगह नहीं किसी पाले में।

अकलियत के दुश्मन हर जगह ही हैं
कुछ उस पाले में तो कुछ इस पाले में।

वहशत के डर से जो हो गयी है बेघर
मुहब्बत अब जा रहेगी किस पाले में।

- भूपेश पंत

कोई टिप्पणी नहीं:

एक टिप्पणी भेजें