शुक्रवार, 28 दिसंबर 2018

चीन पर निगाहें, नेहरु पर निशाना!

"जो समाज अपने इतिहास के नायकों का सम्मान नहीं करता उसकी कोख से सिर्फ खलनायक ही जन्म लेते हैं."
भूपेश पंत

सोशल मीडिया पर इन दिनों चीन को लेकर एक अलग तरह का आक्रोश देखने को मिल रहा है. दिलचस्प बात ये है कि आभासी दुनिया के देशभक्त रणबांकुरे चीन के मौज़ूदा आक्रामक तेवरों को देश के पहले प्रधानमंत्री स्व. जवाहरलाल नेहरु की चीन नीति और 1962 के युद्ध में मिली हार से जोड़ते हुए उनके मान मर्दन से भी परहेज़ नहीं करते. वे लोग भूल रहे हैं कि इतिहास की स्वस्थ समीक्षा के लिये उस दौर से जुड़े हर पहलू पर ध्यान देने की जरूरत होती है. पूर्वाग्रह और संकीर्ण मानासिकता से की गयी आलोचना आने वाली पीढ़ियों के सामने इतिहास का केवल एकांगी और विकृत चेहरा ही पेश करेगी

स्वस्थ आलोचना करना हमारा लोकतान्त्रिक अधिकार है लेकिन किसी की मृत्यु के बाद उसकी कुछ (सामूहिक) विफलताओं की आड़ लेकर उसके महत्वपूर्ण योगदान को नकारना भारतीय संस्कार नहीँ है और ना ही देशभक्ति का परिचायक. जो समाज अपने इतिहास के नायकों का सम्मान नहीं करता उसकी कोख से सिर्फ खलनायक ही जन्म लेते हैं. नेहरु, गाँधी या देश की आज़ादी से लेकर उसके विकास में शामिल लोगों से कई मामलों में इत्तफ़ाक न रखने के बावजूद मैं उनकी सकारात्मक भूमिका को नकार नहीं सकता. मेरा मानना है कि बुतों को तोड़ना तालिबानी कृत्य है और बुत केवल हथौड़े से नहीँ तोड़े जाते.

चलते चलते एक कहानी….

एक बार प्रधानमंत्री पंडित नेहरू दौरे पर एक गाँव में पहुंचे. वहां लोगों की भीड़ ने उन्हें घेर लिया और वो उनसे उनकी समस्याएं सुनने लगे. तभी अचानक भीड़ से एक बूढ़ी महिला सामने आयी और पंडित नेहरू का गिरेबान पकड़ कर गुस्से से बोली कि मैंने देश की आज़ादी की लड़ाई में अपने दोनों बच्चे खो दिए और बदले में मुझे क्या मिला? पंडित नेहरू उसके हाथों को अपने हाथ में लेकर शांत स्वर में बोले माताजी आपको ये अधिकार मिला है कि आप अपने प्रधानमंत्री का गिरेबान पकड़ कर उससे ये सवाल पूछ सकती हो.

आइये पंडित नेहरू और आज़ादी की लड़ाई में शहीद हुए तमाम जाने अनजाने लोगों को याद करें और लोकतंत्र के इस सबसे बड़े अधिकार को भी जिसे हमें हर हाल में सुरक्षित रखना है. जय हिंद .

Posted by: News Trust of India 07/07/2017

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