ज़िंदगी को ज़िंदगी की दरक़ार है
आँखों में आंसू हैं और चीत्कार है
मत उलझ इन मज़हबी बहसों में
कह भी दे कि तुझे देश से प्यार है।
गिरा डाल नफ़रतों की यह दीवार
फेंक दे हैवानियत के हर हथियार
तेरा धर्म इंसानियत की पुकार है
कह भी दे कि तुझे देश से प्यार है।
बांटने वालों पर तू ना ध्यान धर
तू इनके मंसूबों की पहचान कर
यही वक्त की सबसे बड़ी हुंकार है
कह भी दे कि तुझे देश से प्यार है।
सत्ता है क्या सब कुर्सी का खेल है
सच पर फंदा झूठ की रेलमपेल है
इनके झांसे में आने से इनकार है
कह भी दे कि तुझे देश से प्यार है।
उड़ रहे जो ये विकास के परिंदे हैं
आंकड़े नहीं हैं ये झूठ के पुलिंदे हैं
जिनमें टूटते सपनों की झनकार है
कह भी दे कि तुझे देश से प्यार है।
अन्नदाता ही जहां अन्न नहीं खाता
मर के भी जो कर्ज़ चुका नहीं पाता
तेरा जीवन उसका भी कर्ज़दार है
कह भी दे कि तुझे देश से प्यार है।
जो सीमा पर अपनी जां लुटाते हैं
तेरे लिये तिरंगा लपेट कर आते हैं
उन पर भी सियासत, धिक्कार है
कह भी दे कि तुझे देश से प्यार है।
अदालत के डंडे से ही चल रही है
अच्छे दिनों की आस, छल रही है
इसके लिये तो तू भी ज़िम्मेदार है
कह भी दे कि तुझे देश से प्यार है।
सरहदों से केवल बनता देश नहीं
लोग नहीं फिर कुछ भी शेष नहीं
आपस में ही क्यों मची तकरार है
कह भी दे कि तुझे देश से प्यार है।
जो बन बैठी है धूर्त, अहंकारी है
वही व्यवस्था है वही सरकारी है
तेरी नादानी का तुझही पर भार है
कह भी दे कि तुझे देश से प्यार है।
हां मुझे देश से प्यार है।
- भूपेश पंत
आँखों में आंसू हैं और चीत्कार है
मत उलझ इन मज़हबी बहसों में
कह भी दे कि तुझे देश से प्यार है।
गिरा डाल नफ़रतों की यह दीवार
फेंक दे हैवानियत के हर हथियार
तेरा धर्म इंसानियत की पुकार है
कह भी दे कि तुझे देश से प्यार है।
बांटने वालों पर तू ना ध्यान धर
तू इनके मंसूबों की पहचान कर
यही वक्त की सबसे बड़ी हुंकार है
कह भी दे कि तुझे देश से प्यार है।
सत्ता है क्या सब कुर्सी का खेल है
सच पर फंदा झूठ की रेलमपेल है
इनके झांसे में आने से इनकार है
कह भी दे कि तुझे देश से प्यार है।
उड़ रहे जो ये विकास के परिंदे हैं
आंकड़े नहीं हैं ये झूठ के पुलिंदे हैं
जिनमें टूटते सपनों की झनकार है
कह भी दे कि तुझे देश से प्यार है।
अन्नदाता ही जहां अन्न नहीं खाता
मर के भी जो कर्ज़ चुका नहीं पाता
तेरा जीवन उसका भी कर्ज़दार है
कह भी दे कि तुझे देश से प्यार है।
जो सीमा पर अपनी जां लुटाते हैं
तेरे लिये तिरंगा लपेट कर आते हैं
उन पर भी सियासत, धिक्कार है
कह भी दे कि तुझे देश से प्यार है।
अदालत के डंडे से ही चल रही है
अच्छे दिनों की आस, छल रही है
इसके लिये तो तू भी ज़िम्मेदार है
कह भी दे कि तुझे देश से प्यार है।
सरहदों से केवल बनता देश नहीं
लोग नहीं फिर कुछ भी शेष नहीं
आपस में ही क्यों मची तकरार है
कह भी दे कि तुझे देश से प्यार है।
जो बन बैठी है धूर्त, अहंकारी है
वही व्यवस्था है वही सरकारी है
तेरी नादानी का तुझही पर भार है
कह भी दे कि तुझे देश से प्यार है।
हां मुझे देश से प्यार है।
- भूपेश पंत
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