शनिवार, 29 दिसंबर 2018

बेवकूफ़ों की नंगई!

भूपेश पंत

बचपन से हम और आप एक कहानी अकसर सुनते आ रहे हैं। फिर भी संदर्भ के लिये ये कहानी सुनाता हूं, “ किसी राज्य में एक राजा था, जो अक्सर चापलूस और भ्रष्ट मंत्रियों व दरबारियों से घिरा रहता। एक बार राजा के दरबार में दो ठग पहुंचे। उन्होंने दावा किया कि वो राजा के लिये ऐसी सुंदर पोशाक तैयार करेंगे जैसी कि कोई सपने में भी नहीं सोच सकता। उसकी सबसे बड़ी खूबी ये होगी कि किसी मूर्ख, अयोग्य और भ्रष्ट व्यक्ति को वो पोशाक नज़र नहीं आयेगी। राजा समेत सभी को ये जानने की उत्सुकता हुई कि आखिर ये पोशाक कैसी होगी। ठगों को तुरंत पोशाक बनाने का आदेश दिया गया। राज्य से तमाम सुविधाएं हासिल करते हुए ठग अपने काम यानी मौजमस्ती में जुट गये। राजा ने कई बार अपने मंत्रियों को उनके काम की रफ्तार जानने भेजा और हर बार उसे बताया गया कि उन्होंने अपनी आंखों से वस्त्र देखे हैं जो बेहद खूबसूरत हैं। दरअसल मंत्रियों को वो पोशाक कभी दिखी नहीं लेकिन ये बात कह कर वो खुद को कैसे मूर्ख, अयोग्य और भ्रष्ट कहलाना पसंद करते।"

“राजा ने तय किया कि जिस दिन नयी पोशाक़ तैयार हो जायेगी, उस दिन एक भव्य समारोह होगा। राज्य भर में इसकी मुनादी करवा दी गयी कि राजा नयी पोशाक़ पहनकर नगर में निकलेगा। आखिरकार वो दिन आया जब ठग वो पोशाक लेकर दरबार में आये। ठगों ने राजा के सारे कपड़े उतरवा दिये। फिर वे देर तक उसे नये परिधान में सजाने-धजाने का अभिनय करते रहे। राजा को कुछ नज़र नहीं आया और ना ही उसके मंत्रियों और दरबारियों को। लेकिन ये बात वो भला बोलें भी तो कैसे। फिर वही हुआ जो होना था। सब एक स्वर में वाह वाह कर उठे। राजा के चापलूस मंत्रियों, दरबारियों और नौकर-चाकरों ने एक स्वर में उसकी तारीफ़ों के पुल बाँधने शुरू कर दिये क्योंकि वो नहीं चाहते थे कि उन्हें मूर्ख, अयोग्य या भ्रष्ट घोषित कर दिया जाए। ठगों की अदृश्य पोशाक पहन कर राजा नंगा हो चुका था। लेकिन उसे नंगा कहने की हिम्मत किसी में नहीं थी। नंगधड़ंग राजा भी सन्तुष्ट भाव से सिर हिलाते हुए बाहर चल पड़ा। रास्ते के दोनों तरफ़ खड़ी प्रजा भी मूर्ख कहलाना नहीं चाहती थी लिहाजा सबने राजा की नयी पोशाक़ की जमकर प्रशंसा की।लेकिन तभी एक बच्चा बड़ी मासूमियत से तालियां बजा बजा कर बोल पड़ा, “अरे देखो, राजा तो नंगा है!” एक क्षण में ही राजा के नंगेपन और लोगों की आँखों पर पड़ा झूठ का आवरण हट चुका था।"


आज के वक़्त में इस कहानी के किरदार सिर के बल उलट चुके हैं। मौजूदा लोकतंत्र में जनता का ही राज माना जाता है और वही वोट देकर राजकाज चलाने के लिये अपने सेवकों या प्रतिनिधियों को चुनती है। लेकिन नेता, प्रशासक और कारोबारी के रूप में ठगों का अपवित्र गठजोड़ लोकतंत्र के नाम पर ठगतंत्र चला रहा है। विकास के नाम पर ये ठग हर चुनाव में जनता रूपी राजा को ऐसी ही खूबसूरत पोशाक पहनाने का वादा करते हैं जो केवल बेवकूफों को नज़र नहीं आती। यानी जिसने भी विकास के उनके दावों को चुनौती दी वो खुद ही सार्वजनिक तौर पर बेवकूफ घोषित हो जाता है। जनता अपने ही जन प्रतिनिधियों के हाथों अपने कपड़े उतरवाने और विकास की अदृश्य पोशाक पहन कर नंगधड़ंग घूमने के लिये मजबूर की जाती रही है। उन्हें नंगा कर ये ठग अपनी जेबें भर रहे हैं जबकि राजा कहलाने वाली आम जनता हर बार चुनाव में छली जाती रही है। लोग जानते बूझते भी ये स्वीकारने को तैयार नहीं कि उन्हें विकास की जो पोशाक पहनायी जा रही है वो असल में है ही नहीं। खुद को बेवकूफ कहलाने की शर्मिंदगी से बचने के लिये वो लगातार ठगे जाने पर मजबूर हैं।

पिछली कहानी में जिस मासूम बच्चे ने राजा को नंगा कहने का साहस किया था उसे एक लिहाज़ से आज का मीडिया मानें तो मौजूदा दौर में लोकतंत्र का चौथा स्तंभ कहलाने वाला ये बच्चा अपनी मासूमियत खो चुका है। उसमें ये कहने का बालसुलभ साहस बचा ही नहीं है कि विकास की बाट जोह रहा लोकतंत्र के अंतिम छोर पर खड़ा आदमी आज भी शर्मनाक तरीके से नंगा है। मौजूदा दौर में ये हिम्मत जुटा पाना मुश्किल ज़रूर लगता है लेकिन नामुमकिन नहीं। ये तभी होगा जब मीडिया अपने निहित स्वार्थ और दलीय प्रभावों से मुक्त होगा। जिनमें ये कर्तव्य बोध बचा भी है, सत्ताधारी ठगों के इर्दगिर्द मंडराने वाले दरबारी अपनी मूर्खता छुपाने के लिये उन्हें ही बेवकूफ़ साबित करने पर तुले हैं ताकि ऐसे ठगों का सच सामने न आ सके जो विकास का पैमाना अपने वोट बैंक और तिजोरियों के फैलाव से तय करते हैं। लोगों को विकास की असली पोशाक पहननी है तो उन्हें पहले ये खुद स्वीकारना होगा कि वोट के दम पर सत्ता को बदलने की ताकत रखने वाला राजा आज भी नंगा है। और ये भी कि नंगेपन और बेवकूफ़ी का मेल ही इस दौर की सबसे बड़ी सच्चाई है।

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