शनिवार, 29 दिसंबर 2018

सब जानते हैं!

कितना कहता हूँ कहाँ मानते हैं
मुझे थोड़ा थोड़ा सब जानते हैं।

जो माल उन्होंने अंटी में दबाया
कहां से है पाया सब जानते हैं।

गज़ब ऐसी भक्ति कहां से लाया
झूठ का है साया सब जानते हैं।

जैसा जो करेगा वैसा ही भरेगा
कोई नहीं बचेगा सब जानते हैं।

जोड़ेगा, तोड़ेगा वो नहीं छोड़ेगा
कितना पसोड़ेगा सब जानते हैं।

बांटेगा, मनाएगा या धमकाएगा
लोकतंत्र लाएगा सब जानते हैं।

कर नोट पर चोट खरीदेगा वोट
नीयत में है खोट सब जानते हैं।

बीते पर दोष, वर्तमान खामोश
फैलेगा आक्रोश सब जानते हैं।

सजा कर वेश घूमने देश विदेश
क्यों उड़े खगेश सब जानते हैं।

पढ़ना किताब कितना है खराब
कौन देगा हिसाब सब जानते हैं।

जवान या किसान देश की शान
सस्ती होती जान सब जानते हैं।

गलियों में दंगा है सत्ता का पंगा
मरेगा भूखा नंगा सब जानते हैं।

ज़ुबानों पर ताला पेट पर लात
बदल रहे हालात सब जानते हैं।

अंधेरे ने की है घात देने को मात
जुगनू जलेंगे रात सब जानते हैं।

बेसब्र बारिश में उमड़ते जज़्बात
मौसमी है ये बात सब जानते हैं।

सूने होते पहाड़ सूखे हाड़ झाड़
किसने खायी बाड़ सब जानते हैं।

तेल की धार या महंगाई की मार
होगा कौन शिकार सब जानते हैं।

आभासी दरबार कुतर्कों के वार
दोधारी है तलवार सब जानते हैं।

वादों की पतीली सुलगते सवाल
गल नहीं रही दाल सब जानते हैं।

भेड़ों जैसी शक्ल खद्दर सी खाल
चुनावी है ये साल सब जानते हैं।

- भूपेश पंत

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