शनिवार, 29 दिसंबर 2018

मत आना बापू!

बापू!
तुम मत आना
फिर से
ये देखने कि
इतनी कुर्बानियों से मिली
आजादी का
क्या हाल कर दिया है
हमने
सत्तर सालों में
अपने ही लोगों की
दिमागी गुलामी के जरिये
किस तरह
सत्ता के उपभोग की
नयी इबारत
लिखी है
माना कि
हम नतमस्तक हैं
तुम्हारी तस्वीर के आगे
लेकिन
जब आकर देखोगे
समता मूलक समाज
का सपना
तो हम
अपना पुश्तैनी हक
सुई की नोक बराबर भी
किसी वंचित मेहनतकश से
बाँट नहीं पायेंगे
इसलिए
तुम्हारा दोबारा आना है
वर्तमान के लिये अप्रासंगिक
और
भविष्य के लिये
अराजकता का पैगाम
लिहाज़ा
अतीत जीवियों को
उनके हाल पर छोड़ देना
बेहतर होगा
इसलिये
हमारे बुलाने पर भी
मत आना
बदले में
हम अपने कर्मों से
तुम्हारी प्रासंगिकता
बनाये रखेंगे।

बापू!
आज तुम ज़िंदा होते
तो सबसे बड़े रामभक्त होते
चरखा चलाते, रामधुन गाते
तुम देखते कि
सीना छलनी होने के बाद
मुँह से निकली हे राम की ध्वनि
अब नये रूप में सत्ता की प्रतिध्वनि
बन चुकी है
हत्यारा अब राष्ट्रभक्त है
और
तुम केवल राष्ट्रपिता
तुम्हारे
राम राज्य के सपने
को अपने लोकतांत्रिक साम्राज्य
में
साकार करने के लिये
जोशीले राम भक्तों को
जन्म दिया है
हमने
जो
अहिंसा पर विश्वास नहीं करते
वो तुम्हारा आना
सह नहीं पाएंगे
इस बार भी
तुम्हारी अहिंसा की
लाठी से
बना लिये हैं
कई सत्ता पोषित डंडे
सिर भी बढ़ गये हैं अब
घुसपैठियों और बुद्धिजीवियों के
हमारी मुश्किल और बढ़ाने
मत आना।

बापू!
आज खुश तो
बहुत होते तुम
देख कर
कि तुम्हारा सफाई का संदेश
स्वच्छता के
नये मापदंड बना रहा है
हमने
तन मन और धन
तीनों को साफ करने की
योजना बना ली है
गंदगी अब दिखायी नहीं देती
होने के बाद भी
हमने गंदे नोट तक बदल दिये
हां लेकिन
तुम अब भी हो वहाँ
निश्छल मुस्कुराहट के साथ
तुम्हारे अपनों ने
इसी फोटो फ्रेम को
हर दफ्तर में लगा कर
भ्रष्टाचार को
गांधीवादी चेहरा दिया था
हमने ये स्वदेशी तस्वीर अब
निजी और विदेशी
कंपनियों की मदद से
चमका दी है
देश के चुनिंदा पूंजीपतियों को
अपने गांधीवाद का झंडा फहराने
विदेश तक भेज दिया है
नदियों का पानी
बैंकों की तिजोरियां
और
गरीब गुरबों के घरों के कोने तक
हमने साफ कर दिये हैं
आंकड़ों में
भरपूर
शौचालय दिये हैं
ये कहने में
हमें कोई संकोच नहीं
कि इस स्वच्छता की प्रेरणा
हमें
तुम्हारी तस्वीर से ही मिली।

बापू!
तुम सच की
कड़वाहट
और
हम सत्ता के
मोदक
तुम पथ के प्रदर्शक
तो
हम सफलता की मीनार
तुम सत्य के आग्रही
और
हम उसे रोज गढ़ने वाले
हमारा इंद्रजाल
अंतर्जाल के सहारे
सच को ही देशद्रोही
साबित करने में
जुटा है
तुम्हारा फिर से आना
सड़क पर
ले आयेगा हमें
इसी डर से
तुम्हारी आत्मा की शांति के लिये
रख दिये हैं कई रास्तों के
नाम
ताकि हम खादी पहन
छल सकें
और
गर्व से चल सकें
तुम्हारे पथ पर
बिना अपने किसी नुकसान के
हमने अपने इर्दगिर्द
बिखेर दी हैं तुम्हारी मुस्कुराती
तस्वीरें अनगिनत
कुछ सहेजने के लिये
तो कुछ
कुचले जाने के लिये
हम
तुम्हारे पुतलों पर हार
तब तक
चढ़ाते रहेंगे
जब तक तुम्हारे
फिर से
पैदा होने का डर
खत्म ना हो
जाये
या फिर ये दुनिया!

- भूपेश पंत

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