शुक्रवार, 28 दिसंबर 2018

पिक्चर अभी बाकी है….!




भूपेश पंत

अगले साल होने वाले आम चुनाव के लिए बीजेपी की ओर से बिसात बिछनी शुरू हो गई है। मेरा मानना है कि जम्मू कश्मीर में सरकार को गिराने का यह फैसला दोनों दलों की नूरा कुश्ती से अधिक कुछ नहीं है और इससे होने वाला राजनीतिक ध्रुवीकरण अगले आम चुनाव और जम्मू कश्मीर के विधानसभा चुनाव में दोनों दलों के लिए काफी अहम साबित होगा।
बीजेपी की साफ मंशा अगले 1 साल में राज्यपाल शासन के दौरान आतंकवाद और इसके जरिए राष्ट्रवाद को मुद्दा बनाकर अगला आम चुनाव लड़ने की है। राज्य में हालात इतने बिगड़ चुके हैं कि कोई भी दूसरा राजनीतिक दल नई गठबंधन सरकार के गठन के जरिए राज्य में लोकतांत्रिक व्यवस्था को बनाए रखने और उससे होने वाले राजनीतिक नुकसान का जोखिम नहीं लेना चाहता। लिहाजा जम्मू कश्मीर में हर राजनीतिक दल इस वक्त गवर्नर के शासन को एक मात्र विकल्प मान रहा है। बीजेपी भी यही चाहती थी कि गवर्नर के शासन के जरिए राज्य की कमान केंद्र के हाथों में आ जाए। बीजेपी ने जिस तरह महबूबा मुफ्ती की पीडीपी के साथ इस तलाक को अंजाम दिया उसकी नाटकीयता पर्दे के पीछे के किसी खेल को उजागर करने की हिमायत जरूर करती है।
फैसले के वक्त को देखें तो जम्मू कश्मीर की आवाम के लोकतांत्रिक हितों को ताक पर रख कर लिया गया यह फैसला राजनीतिक महत्वाकांक्षाओं से प्रेरित लगता है। क्या कारण है कि रमजान में सीजफायर के जिस फैसले को इसकी एक अहम वजह बताया जा रहा है उसे लेने से पहले ही सरकार से अलग होने का फैसला नहीं लिया गया। सोशल मीडिया में सरकार के इस फैसले की काफी आलोचना हो रही थी। लेकिन अगर यह फैसला तब ले लिया गया होता तो बीजेपी पर पूरी तरह से मुस्लिम विरोध का ठप्पा लग जाता। उसने जहां एक और इस एक महीने के मौके को बढ़ती पत्थरबाजी और आतंकवादी घटनाओं के जरिए अपने वोट बैंक में राष्ट्रवाद को उत्प्रेरित करने के लिए इस्तेमाल किया वही मुस्लिम वोट बैंक को भी लुभाने की कोशिश की।
इस एक महीने के अंतराल ने दोनों दलों को यह मानने के लिये तैयार कर दिया कि इस वक्त साथ छोड़ना सियासी तौर पर सबसे मुफीद होगा। यही वजह है कि इस फैसले के बाद बीजेपी ने सरकार में शामिल रहने के बावजूद इसका ठीकरा पीडीपी पर फोड़ा तो दूसरी ओर महबूबा मुफ्ती ने भी धारा 370 को बरकरार रखने समेत अपनी पार्टी की सरकार की उपलब्धियां गिनाने में देर नहीं की।
जाहिर है बीजेपी को लगता है कि जम्मू कश्मीर के मौजूदा और आने वाले घटनाक्रमों का लाभ अगले आम चुनाव में पूरे देश में उसे मिल सकता है जबकि पीडीपी खुद को सीजफायर और जम्मू कश्मीर की आवाम की हिमायती बताते हुए अगले आम चुनाव में बहुमत की अपील के साथ इसका राजनीतिक फायदा उठाने की कोशिश करेगी। यानी इस एक राजनीतिक दांव से दोनों ही दलों ने अपने पाप धोने की कोशिश की है। सियासी शतरंज पर इस बिसात को उसी दिन बिछा दिया गया था जब यह बेमेल गठबंधन सामने आया था। आज इस नाटक का अंत हो गया। लेकिन पर्दा अभी गिरा नहीं है… पिक्चर अभी बाकी है मेरे दोस्त।
Posted by: News Trust of India 19/06/2018

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