गुरुवार, 20 नवंबर 2008

हादसे-एक ग़ज़ल



जो कभी ज़हर के प्याले थे अब जाम हो गये हैं
हादसे मेरे शहर में अब आम हो गये हैं....
छपती थी सुर्ख़ियों में कभी क़त्ल की इबारत
इंसानियत के क़ातिल अब ग़ुमनाम हो गये हैं...
जो वेश धर रावण का, पेट भरा करते थे
वो सभी बहुरूपिये अब राम हो गये हैं...
सुकूं पाते थे जिस कब्र पर थोड़ा ठहर कर
वहीं हमारी मौत के इंतज़ाम हो गये हैं...
न चल सकोगे तुम भी मेरे साथ हमसफर
हम भी शहर में आजकल बदनाम हो गये हैं...
ज़माने के साथ कुछ तो बदलना सीखो शरीफज़ादो
चोरी, डकैती, क़त्ल अब बड़े काम हो गये हैं...