शुक्रवार, 28 दिसंबर 2018

सच में!

जीत कर जो लोग संसार जाते हैं
वो कई पीढ़ियों को देश की तार जाते हैं।
भीड़ के मज़हबी उन्माद के आगे
कुछ वो हार जाते हैं कुछ हम हार जाते हैं।
ये शख्स अकेला क़ातिल नहीं होगा
जाना होगा वहां तक जहाँ ये तार जाते हैं।
नफ़रत की यही सीढ़ियाँ चढ़ कर
कुछ इस पार आते हैं, कुछ उस पार जाते हैं।
मत छेड़ तू इन भेड़ों की भीड़ को
ये अपने खुरों से अक़लियतों को मार जाते हैं।
चलो बना लेते हैं मचान यहीं पर
हर रोज यहां से, ग़रीबों के मददगार जाते हैं।
गढ़ ली गयी है अब इंसान की मूरत
अजायबघर में देखने चलो एक बार जाते हैं।
शहीदों की चिताओं पर ये तो देखो
वो काट कर उंगली बजरिये तलवार जाते हैं।
उसने रच लिया है तिलिस्म ऐसा
फूल बरसते हैं, जहां से भी सरकार जाते हैं।
ज़म्हूरियत का मजा बहल जाने में है
सोचने वाले तो इस दर से भी लाचार जाते हैं।

- भूपेश पंत

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