शनिवार, 29 दिसंबर 2018

भागते रहो!

(कार्टून/कविता)

वो
दिन रात
काम करता है
पूंजीपतियों के लिये
भेष बदल बदल कर
देश विदेश की गलियों में
उस चौकीदार की लाठी
की आवाज़ लगातार
गूंजती है
उनके कानों में
जैसे कह रही
हो
भागते रहो।

- भूपेश पंत

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