शनिवार, 29 दिसंबर 2018

बेबस बुत!

ये कैसा वहम गोया उसके दिल में गड़ गया
बुत लगा कर ख़ुदाया मेरा कद भी बढ़ गया।

जंगल के सन्नाटे में गूंजी मीटू मीटू की चीख
सरकारी अमला दोष सारा तोते पे मढ़ गया।

मैंने तो बस दिलायी थी अच्छे दिनों की याद
मुँह बिचका के यार मेरा आगे को बढ़ गया।

एक दिन मुझे यहीं पर भक्तों से पुजवाना है
ये कह के वो मंदिर की चार सीढ़ी चढ़ गया।

सोचा न था ये दाग एक दिन तो नासूर बनेंगे
छोड़ दिया इनको तो पूरा फल ही सड़ गया।

लाया गया मजलिस में सुनाने जन की बात
वो शख़्स तो अपनी ही कहने पर अड़ गया।

कट कर धूल में मिल गयी ईमान की पतंग
पेंच उसका इस बार सियासत से लड़ गया।

उसने नहीं कही कभी अपने मन की बात
जब तक पता चला सब कुछ उजड़ गया।

खबरों में अब अपनी ही खबर नहीं होती
शायद अपना ही कोई चैनल बिगड़ गया।

बड़ा ढीठ निकला मौके पे सोता चौकीदार
मैंने उसे जगाया तो हत्थे से उखड़ गया।

- भूपेश पंत

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