मंगलवार, 2 जून 2009

स्किपी की याद में....





लोग कहते हैं वो नहीं थी किसी इंसान से कम,पर वो इंसानों से ज़्यादा वफादार थी

गोया लबों पर नहीं थी उसके कुदरती हंसी, फिर भी हमारे लिये खुशियों का भंडार थी

उसके बालों पर रोज फिरते थे स्नेह के हाथ, शायद इसीलिये वो इतनी चमकदार थी

आंखों में उसकी रहते थे हरदम ढेरों सवाल, पूछने की आदत तो और भी गरज़दार थी

वो हर हाल में हिलाना अपनी नन्हीं सी दुम, ग़म और खुशी में मानो वो एकसार थी

इशारे पर गुर्राना, दौड़ कर गोदी में सिमट आना, उसकी तो हर एक अदा यादगार थी

चंद लम्हों में जितना प्यार बांट कर गयी, उससे कहीं ज़्यादा वो प्यार की हकदार थी

कैसे भूल पाएंगे तेरी खट्टी मीठी यादों को, जानवर नहीं तू तो कोई रूहानी उपहार थी


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