चुनाव में बीजेपी
की शानदार जीत के बाद केंद्र में अबकी बार मोदी सरकार बनने का इंतज़ार कर रहे
उत्तराखंड के लोगों को उस वक्त मायूसी हाथ लगी जब देश के पंद्रहवें प्रधानमंत्री
नरेंद्र मोदी के मंत्रिमंडल में राज्य से एक भी चेहरे को जगह नहीं मिली। लोकसभा चुनाव
में उत्तराखंड की पांचों सीटों पर कमल खिला कर दिल्ली भेजने के बाद लोगों को
अपेक्षा थी कि इस बार राज्य का कम से कम एक चेहरा तो अवश्य केंद्रीय मंत्रिमंल में
शामिल होगा, लेकिन ऐसा हुआ नहीं। नरेंद्र मोदी के उत्तराखंड प्रेम की दुहाई दे रहे
प्रदेश बीजेपी के नेताओं को तो मोदी के इस फैसले से झटका लगा ही है, कार्यकर्ताओं
को भी बड़ी निराशा हुई है। बीजेपी नेता अब इसे पार्टी हाईकमान की मर्जी मान कर
मंत्रिमंडल विस्तार में जगह मिलने की उम्मीद लगा रहे हैं।
उत्तराखंड से जीते बीजेपी के पांच सांसदों में
उम्र और वरिष्ठता के लिहाज से गढ़वाल से सांसद और पूर्व मुख्यमंत्री बीसी खंडूड़ी
मंत्रिमंडल में जगह पाने के सबसे मजबूत दावेदार माने जा रहे थे। खंडूड़ी इससे पहले
वाजपेयी सरकार में मंत्री रह चुके हैं। नैनीताल संसदीय सीट पर रिकॉर्ड अंतर से जीत
दर्ज़ कराने वाले पूर्व मुख्यमंत्री भगत सिंह कोश्यारी दूसरे बड़े दावेदार थे। संघ
और राजनाथ सिंह से करीबी रिश्तों को देखते हुए कोश्यारी के मंत्रिमंडल में शामिल
होने की अटकलें जोर पकड़ रही थीं। राज्यसभा सांसद रह चुके कोश्यारी पहली बार
लोकसभा पहुंचे हैं लेकिन मोदी के मंत्रिमंडल में कई ऐसे लोगों को जगह मिली है जो
पहली बार सांसद बने हैं। खंडूड़ी और कोश्यारी को मंत्रिमंडल से बाहर रखने के लिये
उम्र सीमा को आधार माना जाये तो भी राज्य के एक और पूर्व मुख्यमंत्री निशंक का नाम
संभावित मंत्रियों की लिस्ट में माना जा रहा था। हालांकि हरिद्वार से सांसद बने
निशंक को उत्तराखंड के मुख्यमंत्री पद से हटाने की वजहें बीजेपी के गले की फांस बन
सकती थी। वहीं टिहरी सीट से दूसरी बार चुनी गयीं महारानी राज्यलक्ष्मी शाह का नाम
महिला प्रतिनिधि के तौर पर मोदी मंत्रिमंडल में स्थान पाने वालों की सूची में
शामिल किया जा रहा था। लेकिन कैबिनेट में पहली बार बड़ी तादाद में महिलाओं को जगह
देने वाली मोदी सरकार में महारानी का नाम शुमार नहीं हो पाया।
उत्तराखंड से किसी को भी मोदी मंत्रिमंडल में जगह
न मिल पाने से बीजेपी हैरान है तो कांग्रेस को बैठे बिठाए राज्य में बंपर जीत से
उत्साहित बीजेपी पर तंज कसने का मौका मिल गया है। संकेत मिल रहे थे कि मोदी की टीम
में युवा और बेदाग चेहरों को ही प्राथमिकता दी जाएगी। ऐसे में कांग्रेस ये सवाल
पूछ सकती है कि क्या उत्तराखंड के पांचों सांसदों में से कोई भी इस कसौटी पर खरा
नहीं उतरा। मोदी सरकार में उत्तराखंड अपनी जगह क्यों नहीं बना पाया, इसका जवाब
कांग्रेस के साथ साथ राज्य के मतदाता भी बीजेपी नेताओं से ज़रूर पूछेंगे। लेकिन
इसका असर आने वाले दिनों में प्रदेश की सियासत पर किसी ना किसी रूप में पड़ना तय
है। पिछले आम चुनाव में राज्य में कांग्रेस ने पांचों सीटें जीती थीं और मनमोहन
सिंह की कैबिनेट में हरीश रावत को जगह मिली थी। रावत अब सूबे के मुखिया हैं और
तीनों पूर्व मुख्यमंत्रियों के दिल्ली जाने के बाद बीजेपी राज्य में नेतृत्व की
कमी से जूझ रही है। हाल ये है कि पंद्रह सालों के बाद पहली बार राज्य का कोई चेहरा
केंद्रीय मंत्रिमंडल में शामिल नहीं है और वो भी सभी सीटें बीजेपी की झोली में
डालने के बावजूद। राज्य में विकास कार्यों के लिहाज से इस कमी को पांचों सांसद किस
तरह पूरा कर पाएंगे, ये तो देखने वाली बात होगी ही, लेकिन इससे कांग्रेस नेताओं को
बीजेपी को कठघरे में खड़ा करने का मौका ज़रूर मिल गया है।
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