मंगलवार, 20 अक्तूबर 2015

पहाड़ की पाती


(अजय ढौंडियाल का विशेष लेख)

मेरे प्यारे बच्चो,
           मैं तुम्हारी मां, पहाड़। ये पाती लिखते हुए मेरे आंखें भरी हुई हैं। तुम्हारी ये बहदाल मां तुम्हारी खुशी और सलामती की दुआ कर रही है। 15 साल हो चुके हैं उस परिवार (उत्तर प्रदेश) से अलग हुए, जहां तुम्हारे और मेरे साथ हमेशा सौतेला व्यवहार होता था। तब सब भरपेट भोजन करते थे और मैं तुम्हें आधे पेट सुलाती थी। वहां से अलग होते वक्त मैं बहुत खुश थी। कितनी लड़ाई लड़ी थी तुमने मेरे खातिर। अपने कई बच्चे मैंने उस लड़ाई में खो दिए। आज सोचती हूं कि आखिर क्या मिला? सपना देखा था कि तुम्हें एक छोटे से घर में खुशहाल रखूंगी, दो जून की रोटी तुम्हें घर में दूंगी, तुम्हें अब कभी भटकना नहीं पड़ेगा। लेकिन सारे सपने टूटे कांच की तरह बिखर गए। उस सौतेले कुनबे से अलग होने और हक की लड़ाई लड़ने में सफेद कुर्ते और टोपी पहने तुम्हारे जो कुछ भाई तुम्हारे पीछे चल रहे थे वो आज मुझे ही सौतेला मानने लगे हैं। बिल्कुल अलग-थलग छोड़ दिया है उन्होंने मुझे और तुम्हारे दूसरे भाई-बहनों को। वो सब आज नेता बन गए हैं। ठीक उसी तरह के नेता जैसे तुम्हारे पुराने घर (उत्तर प्रदेश) में हुआ करते थे। अपनों के ही दुश्मन, सिर्फ स्वार्थी। अपने ही घर में सौतेली बना दी गई हूं मैं। मेरे दूध का कर्ज चुकाने की बजाए ये मेरी ही छाती में सियासत की रोटियां सेंक रहे हैं। मेरे खेत हथियाकर इन्होंने परदेस के धन्ना सेठों को बेच डाले हैं। जिस आंगन में तुम खेला करते थे, उन पर बिल्डरों का कब्जा हो रहा है। गांव के नीचे वाले गधेरे याद हैं ना, वहां आज खनन माफिया का राज है। ऐसा कभी न होता अगर तुम मेरे पास होते।
नेता बन चुके तुम्हारे इन सौतेले भाइयों ने तुम्हारे ही सामने ढेरों वादे किए थे मुझसे। वादा घर-आंगन के विकास का, वादा मेरे नाती-पोतों की अच्छी परवरिश और तालीम का, उन्हें घर-गांव में ही रोजगार दिलाने का, तुम्हारी बीमार मां और भाई-बहनों के इलाज का। 15 साल हो गए हैं। सौतेलेपन से तंग आकर तुम्हारे कई और भाई-बहन गांव छोड़कर चले गए हैं। कूड़ी-पुंगड़ियां लगातार बंजर हो रही हैं। मल्या खोळा, तल्लि बाखळि में बस दो-तीन भाई-बंधु बचे हैं तुम्हारे। जितना हो पाता है वे करते हैं। 8-10 पुंगड़ियों में कोदा-झंगोरा बो पाते हैं, बाकी सब बंजर। अब इन बांजी पुंगड़ियों पर भू-माफिया की गिद्ध नजर टिकी हुई है। सफेद गाड़ियों में दनदनाते हुए आते रहते हैं। मल्या और पल्या गांव में तो इन्हीं में से कुछ ने पॉलीफॉर्म बना दिए हैं। पार गांव के तुम्हारे गिंदी दादा ने अपने सभी सेरे बेच दिए हैं तल्ले मुलुक के एक बनिए को। वो अब सेरों में ऑर्गेनिक फार्मिंग कर रहा है। सल्ट में तुम्हारे रणु भाई ने तल्ली सारी के सभी खेतों में फूल उगाने शुरू कर दिए हैं। महीने में 5 लाख तक कमाता है बल। दिल्ली से एक भल्ला जी आए थे रानीखेत। उन्होंने तो जरा से रुपये देकर गांव वालों से 500 नाली जमीन खरीद ली और अब वहां मेडिसिनल प्लांट लगा रहे हैं। बोल रहे थे कि लाखों का माल पैदा करेंगे महीने में। अमेरिका से पढ़कर लौट आया है सकणीधार (पौड़ी) का एकलव्य रावत। वही रावत जी का लड़का जो दिल्ली में डायरेक्टर हैं। सकणीधार में उसने अपनी बांजी पुंगड़ियों में लिंबा के पेड़ लगा दिए हैं। 250 पेड़ लिंबों से गज्ज भरे हुए हैं। नजीबावाद मंडी से दिल्ली मंडी तक बेच रहा है वो लिंबा। दिल्ली की कंपनी में काम करने वाला जखमोला जी का जेठा लड़का भी कुमाल्डी गांव लौट आया परार। उसने मुर्गी और बकरी पालन का काम शुरू किया था। 10 बकरी ली थी पहले, अब 200 हो गई हैं।
मेरे बच्चो, आओ लौट आओ। मेरी खातिर न सही, अपने खुद के लिए आओ। परदेस में रहने वाले दूसरे लोग तुम्हारी पुंगड़ियां हथिया कर अच्छी-खासी आमदनी कर रहे हैं। तुम परदेस में दिनरात मेहनत कर रहे हो, मेरे नाती पोतों के लिए भी वक्त नहीं मिलता तुमको वहां। बीमारियों के अलग शिकार हो रहे हो। यहां देखो, क्या नहीं है हमारे पास। तुम तो हमेशा से मेहनती हो, फिर सोना उगा सकते हो। आओ, आबाद करो दोबारा अपनी धरती को। मेरी ये पाती पाते ही जवाब जरूर देना। अपनी मजबूरी लिखना, अपनी पीड़ा लिखना, मेरी नाती-पोतों के बारे में भी लिखना। तुमको मेरे पास आने से कौन रोकता है ये जरूर बताना....


तुम्हारी मां  



कोई टिप्पणी नहीं:

एक टिप्पणी भेजें