मेरा गांव, मेरा पहाड़
(भूपेश पंत)
पहाड़ का शांत जीवन, स्वच्छ हवा,
नैसर्गिक सुंदरता, सीढ़ीदार खेत, जीवन की रफ्तार को नियंत्रित करते सर्पीले मोड़
और दूर किसी रेडियो में गूंजता पहाड़ी गीत। इन सब को छोड़ कर भला कौन शहरों की
आपाधापी से भरी ज़िंदगी जीना चाहेगा। रोजगार और सुविधाओं की तलाश में पलायन एक
ज़रूरत बन कर सामने आता है। बड़े शहरों और महानगरों की भीड़ में खोकर पहाड़ के लोग
धीरे-धीरे अपनी जड़ों से कट जाते हैं। कभी-कभी तो इतना कि ना तो उन्हें अपने गांव
का पता मालूम रहता है और ना ही वहां रहने वाले रिश्तेदारों के नाम। पहाड़ की जिस
खूबसूरती को महसूस करने देश विदेश से सैलानी यहां आते हैं, वो अपने भीतर एक गहरी
उदासी पाले हुए है। पहाड़ आने वालों में अपनों के चेहरे की तलाश मायूसी को और बढ़ा
देती है। हर सुबह सूनी आंखों से रास्ता देखते गांव शाम होते होते थक कर सो जाते
हैं। पहाड़ के कई लोग अपनी जड़ों से दूर देश विदेश जाकर काबिल हो गये हैं। गांवों
को इंतज़ार है कि उनके ये काबिल लोग अपनी जेबों में विकास की किरणें भर कर लौटेंगे
तो पहाड़ के चेहरे पर कुछ रौनक लौट पाएगी। सूनी गलियां खिलखिला उठेंगी और मन
आत्मविश्वास से भर उठेगा।
कल ही एक मित्र के ज़रिये पहाड़
के एक नौजवान से मुलाकात हुई। मन सुखद आश्चर्य से भर उठा। अपनी सारी पढ़ाई यूएस और
दूसरे देशों में करने वाला ये युवक विदेशों में नौकरी ढूंढने की बजाय गांव लौट
चुका है। पहाड़ में बागवानी और रोजगार के दूसरे विकल्पों को लेकर अपनी सोच के साथ।
पहाड़ में ऐसे दर्जनों उदाहरण मिल जाएंगे। अपनी ज़िंदगी का लंबा हिस्सा पहाड़ के
बाहर बिता चुके लोग वापस आने के नाम पर भले ही तराई से आगे ना बढ़ पाए हों, लेकिन
कई नौजवान आज भी अपनी जड़ों से जुड़ने की कशमकश में लगे हैं। राजसत्ता एक्सप्रेस
से जुड़ी टीम अपने आप में इसका सबसे बड़ा सुबूत है। हमारी टीम ने जड़ों से जुड़ो
अभियान के ज़रिये प्रवासी उत्तराखंडियों को सामाजिक, आर्थिक और वैचारिक तौर पर
पहाड़ से जोड़ने की मुहिम शुरू की है। राजसत्ता एक्सप्रेस इस अभियान के ज़रिये ना
केवल पहाड़ का संदेश बाहर जा बसे अपने लोगों तक पहुंचाएगा बल्कि पहाड़ के विकास के
लिये बनायी जा रही सरकारी नीतियों में उनके सार्थक हस्तक्षेप का वाहक भी बनेगा।
हमारी कोशिश होगी आपके विचारों, समस्याओं और व्यावहारिक सुझावों के आधार पर सरकार
को आईना दिखाने की। ताकि पहाड़ की सड़कें आपको डरायें नहीं, आधी अधूरी बुनियादी
सुविधाएं मुंह चिढ़ाएं नहीं।
हमें और आपको मिल कर इस पर्वतीय
राज्य को अपने सपनों का उत्तराखंड बनाना है। कब तक हम सरकारी उपेक्षा का रोना रोते
रहेंगे। निराशा और विकल्पहीनता की स्थिति से ऊपर उठ कर पहाड़ के विकास को सियासी
एजेंडे में सबसे ऊपर लाना है। इसके लिये सभी पर्वतीय लोगों को एकजुट होना होगा।
धर्म, जाति और क्षेत्र की दीवारें तोड़नी होंगी और अपना अहं भी छोड़ना होगा। खेती,
बागवानी, पशुपालन, पर्यटन, सौर ऊर्जा, शिक्षा, स्वास्थ्य जैसे तमाम क्षेत्रों में
करने को बहुत कुछ किया जा सकता है। हम चाहते हैं कि सरकार पर्वतीय मूल के नौजवानों
का पलायन रोकने और बाहर जा चुके युवाओं को वापस लाने के लिये प्रोत्साहन नीति
बनाये। हमारे जो लोग बाहर अच्छा काम कर रहे हैं वो अपने गांवों तक कुछ आर्थिक मदद
पहुंचाएं। कई गैर सरकारी संगठन और उत्तराखंड के प्रवासियों के बीच काम कर रहे मंच
इस दिशा में महत्वपूर्ण योगदान दे सकते हैं। हमारी अपील है कि वे लोग और संगठन आगे
आयें, हमारी इस मुहिम का हिस्सा बनें और सोशल मीडिया तथा ई मेल के ज़रिये इस संबंध
में अपने विचारों से हमें ज़रूर अवगत कराएं। हमें उम्मीद है कि फेसबुक पर हमारे
अभियान के पेज ‘जड़ों
से जुड़ो’ के ज़रिये आप अपनी बात
आसानी से हम तक पहुंचा पाएंगे।
आपके प्यार
और सहयोग का आकांक्षी
राजसत्ता एक्सप्रेस
परिवार
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